महोबा का पौराणिक नाम महोत्सव नगर है। विभिन्न प्रकार के महोत्सवों का आयोजन होने के कारण इसका यह नाम पड़ा। महोबा चन्देला राजपूतों की राजधानी थी। जिन्होंने 9वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक राज्य किया। महोबा अपने वीर योद्धाओं आल्हा व ऊदल की जन्मभूमि के रूप में भी जाना जाता है। आजादी के बाद यह हमीरपुर जनपद का एक भाग था।
पर 11 फरवरी 1995 को इसे अलग करके अलग जिला बनाया गया।
महोबा का किला(दुर्ग)
मदन सागर सरोवर के उत्तरी पहाड़ी पर स्थित दुर्ग बिस्मार 1625*600 वर्गफीट क्षेत्र में महोबा का दुर्ग निर्माण चंद्र वर्मन के राज्य्काल से ही आरम्भ हो गया था और उनके वंशजो द्वारा निरंतर इसमें अभिवृद्धि समयानुसार की जाती रही ! यह दुर्ग 1625*600 वर्ग फिट क्षेत्र में पूरी पहाड़ी पर पूर्व से पश्चिम तक निर्मित था ! इसके चारो और दुर्ग विन्यास शास्त्र के अनुसार विविध सैन्य चौकिया बारादरिया प्रस्तर चहारदीवारें बुर्ज द्वार भूमिगत मार्ग और संकेत स्थल आदि निर्मित थे जो ध्वस्त हो चुके हे फिर भी कुछ अवशेष रह गये है जो महोबा के प्रसिद्ध दुर्ग की रचना का आभास करते है वैसे तो दुर्ग के 7 द्वार विभिन्न स्थानों पर आगे-पीछे थे पर इस समय 4 ही प्रमुख रूप से दृष्टिगत है शेष नष्ट हो चुके हैं
भैंसासुर द्वार प्रमुख था इसकी स्थापना मगरिया नदी के प्रमुख प्रवाह स्थल के ऊपर हुई थी जिसके बनने में महान कठिनाई हुई होगी जब भैंसे की बलि दी गयी और महिसासुर मर्दिनी का आवाहन किया गया तब यह स्थापित किया जा सका होगा किवदंती हे इसी कारण इस दुर्ग द्वार का नाम भैसासुर द्वार पड़ा जिसका मार्ग निचे सीढ़ियों द्वारा दो बुर्जो के मध्ये है
दूसरा विशाल द्वार बंधान वार्ड में हे जिसकी सीडिया अब भी हे और उपरी भाग ध्वस्त हो गया है!
तीसरा द्वार भीतर कोटद्वार कहलाता हे जो दुर्ग के पूर्व की और अब खड़ा है
चोथा द्वार बाजा द्वार कहलाता हे जो पश्चिम में हे जनश्रुति के अनुसार वहां इस राज प्रसाद की नोबत बजा करती हे इसलिए उसे बाजा द्वार कहा जाने लगा ! शेष दो द्वार मुहल्ला शुक्लाना और महतवाना में अथे खंडित खड़े हे जारीगंज मुहल का द्वार 50 वर्ष पहले टूट चूका था
इस पारकर 4 द्वार दुर्ग से लगे हुये और तिन द्वार दुर्ग से निचे की वोर अग्रिम प्रतिरक्षा पंक्ति में स्थापित थे !
महोबा के बड़े हनुमान जी का मंदिर
(Mahoba ke bade Hanuman Ji ka Mandir) महोबा के बड़े हनुमान जी का मंदिर महोबा के राजकीय बस स्टेण्ड के सामने स्थित हे बड़े हनुमान जी के मंदिर की स्थापना सन 1983 में रामभक्त स्वर्गीय डॉ. रामनाथ जी जैदका द्वारा करवाया गया था तमाम विध्नों के उपरान्त विशाल यज्ञ समापन कर 16 जून 1997 को प्राण प्रतिष्ठा सम्पन हुवा !यह एक सुन्दर विशाल मंदिर हे जिस की ऊंचाई 127 फुट हे जिस में 55 फुट के महावीर हनुमान जी एक हाथ में गदा लिये और दूसरे हाथ में संजीवनी बूटी पर्वत लिए हुवे है !टिक मंदिर के मध्य पंचमुखी हनुमान जी है जिन की सोभा देखने लायक हे किसी का भी मन मोह लेता हे इस मंदिर को देश के सबसे बड़े ऊँचे मंदिर होने का गौरव प्राप्त है !
खखरा मठ, महोबा
खखरा मठ मदन सागर सरोवर की सौन्दर्य में वृद्धि को और भी आकर्षित करती है! जिसकी संरचना चन्देल नरेश मदन वर्म ने 1129-1163 ई की वस्तुकीय सौन्दर्य का सरोवर के मध्य में स्थित इस देवालय का निर्माण प्रकृर्तिक पाषाण शिलाओं का संग्रहित कर एक ऊची जगह पर किया गया
है! खखरा मठ की बनवट खजुराहो में स्थित कई शैली जैसी है!
खजुराहो शैली में निर्मित इस मंदिर आधार 12.8 मीटर तथा उंचाई 31.4 मीटर है! इसमें एक गर्भगृह,अन्तराल,मण्डप तथा अर्धमण्डप क्रमश :घटते हुए क्रम में अवस्थित है! इसका मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व तथा अन्य दो उत्तर तथा दक्षिण में है! इस देवालय का गर्भ गृह (3.66x3.66 वर्ग मीटर ) विष्णु, लक्ष्मी, गणेश तथा सूर्य की मूर्तियों से अलंकृत जो की इस मंदिर की सौन्दर्य में वृद्धि करता हे
रहिलिया सागर सूर्य मंदिर, महोबा
रहिलिया सागर सूर्य मंदिर सूर्य भगवान को समर्पित है। 9वीं सदी में बनाया गया यह तीर्थ स्थल रहिलिया सागर के पश्चिमी छोर पर स्थित है। इसे शक्तिशाली चंदेल शासक ने बनवाया था। जो चन्देल राजा राहिल देव ने 890 से 910 ने बनवाया था। ईस्वी तक पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में शासन किया था। यह भव्य मंदिर इस समय काफी उजड़ गया है। यह इस क्षेत्र के पुराने प्रतिहारा शैली वास्तुशिल्प का एक बेहतरीन नमूना है। इसका बाँध विशाल, लम्बा चौड़ा एवं सुदृढ़ है। इसके बाँध पर तेलिया पत्थर से सुन्दर राहिला सूर्य मन्दिर बनवाया गया था। यह सूर्य मन्दिर बाँध के पश्चिमी पार्श्व में आज भी दर्शनीय है। राहिला मन्दिर में सूर्य देव की प्रतिमा लगभग 4 फुट ऊँची बलुआ पत्थर की आराधना मुद्रा में है। राहिला सागर को सूरज कुंड भी कहा जाता है।
विजय सागर महोबा(Vijay Sagar)
विजय सागर महोबा बांदा मार्ग से ३ किलोमीटर पूर्व में पहाड़ी के मध्य स्थित हैजिस की सुन्दरता देखने लायक है ! इस सुन्दर जलाशय का निर्माण सबसे पहले गहरवार राजाओ ने करवाया था बाद में इस जलाशय का निर्माण 11 वी शताब्दी में 11 वे चंदेल नरेश विजय ब्र्हा ने करवाया था !जैसा की इसकी सुन्दरता और बनावट से पता चलता है कीतब से इस जलाशय को विजय सागर के नाम से जाना जाता है! इस जलाशय की मदद से लोगों के जीवनयापन में भी बहुत बड़ा योगदान हैविजय सागर की सुन्दरता को चाँद चाँद लगाते इस के चारो और घने वृक्ष है!और उन वृक्षो पर लटकते लगूंरो देखने लायक नजारा होता हे जो की वहा पर आए परेटक को लुभाता है वृक्ष के निचे बेटने का अपना अलग मजा है
महोबा का कीरत सागर(Kirat Sagar)
बुंदेलखंड के महोबा जिले में ऐतिहासिक जगहों की कोई कमी नहीं है, भले ही लोग और पुरातत्व विभाग इन्हें भूल चुके हों। महोबा रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूर है कीरत सागर स्थल जहां हर साल कजरी मेला लगता है।दरअसल यह मेला 1182 में हुए एक ऐतिहासिक युद्ध की याद में होता है। इस युद्ध में महोबा के चंदेल राजा परमाल और पृथ्वी राज चैहान के बीच लड़ा गया था। आज इस स्थल पर कम ही लोग आते हैं। साथ में पुरातत्व विभाग भी जैसे इसे भूल ही गए हैं।
यहां एक ओर मंदिर बने हैं जिनमें कुछ मूर्तियां हैं और दूसरे कोने पर हज़रत हाजी कतालशाह के नाम से एक छोटी सी मस्जिद सी बनी हुई है। सामने एक बड़ा सा तालाब है जिसे साढ़े नौ सौ साल पहले साल 1060 में चंदेला राजा कीर्ती वर्मन ने बनवाया था।
इतिहास गवाह है जब तक कीरत सागर में पानी रहा मुख्यालय में जल संकट नहीं रहा। अपनी दम पर पूरे एक हजार साल तक चंदेलों की पानीदारी का प्रतीक रही यह विरासत अब सिमटती जा रही है। सरोवर के पश्चिमी तट में आल्हा ऊदल के सैन्य प्रशिक्षक ताला सैयद की पहाडि़या समेत जलाशय क्षेत्रों में कई मकान बन गए है। राठ रोड से जुड़े विशाल भूभाग में भूमाफिया अपना विस्तार कर रहे है। हद है कि दर्जनों लोग इसमें सब्जी की खेती करते है। इन लोगों ने एक दर्जन से ज्यादा स्थाई व अस्थाई निर्माण कर रखे है। सरोवर के दक्षिणी छोर में भी भूमाफियाओं का प्लाट बेंचने का अभियान जारी है। चारों ओर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण के चलते पानी का पहुंच मार्ग अवरुद्ध है। नतीजतन बीते एक दशक से इसमें क्षमता का एक चौथाई जल भराव भी नहीं हो पा रहा। नतीजा भूगर्भीय पानी समाप्त होने के रूप में सामने है। तीन दशक पूर्व पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित विरासत घोषित किया था पर संरक्षण के नाम पर हुआ कुछ नहीं।
सर्व धर्म सम भाव का प्रतीक है कीरत सागर
कीरत सागर मात्र जलाशय नहीं, इसके तटबंध में हिंदू, मुस्लिम व ईसाई समुदाय के आधा दर्जन प्राचीन पूजा स्थल हैं। हर दिन सैकड़ों लोग इन स्थलों में पहुंच अपने-अपने तरीके से इबादत करते है। इनका रखरखाव भी सम्बन्धित धर्म के लोग ही करते है। पुरातत्व विभाग ने बीते तीस साल में इनमें से किसी के रखरखाव को एक ईट भी नहीं लगाई। हद तो यह कि विभाग के संरक्षण सहायक एसके सिन्हा को यह भी गवारा नहीं कि कोई दूसरा इन्हें बचाने की कोशिश करें।
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